समाज का कड़वा सच-21

जलती चिता से उठता धुँआ करता यही सवाल, क्यों बेरुखी सा आलम सबका, किसका नही रखा मैनें ख्याल, जीते जी जो साथ रहने की कसमें खाते, मौत पर भला क्यो एक पल भी साथ रहने से घबराते, क्यों जल्दी करे पहुँचाने शमसान, क्यों होते इतने अधीर, कैसे भूले वो सारी कसमें क्यों हो जाये वो इतने गंभीर, चन्द मिनट न हुये मौत को इतनी जल्दी लिये फैसला, ऐसा लगता जैसे सब पता था, सोच रखा था कौन किसको देगा हौसला......

कैलाश की बात सुन मैनें उसे भीरू के पिताजी को अंदर लाने को कहा और देखते ही देखते मेरी पिता और श्रीमती जी ने उनकी व्यवस्था मेरे पिताजी के पलंग के पास ही कर दी , ताकि उनको अकेलेपन का एहसास न हो और वे बेसंकोच किसी भी जरूरत को मेरे पिताजी से साझा कर सके , मैनें अब अपनी प्रमुख जिम्मेदारी अब उन दोनों पर ही छोड़ रखी थी , तभी मैनें कैलाश को नजदिक बुलाकर कुछ सवाल पूछे , और उसे कुछ बातें समझाकर तुरंत विदा कर दिया ।

        एम्बुलेंस का आना और वो भी मेरे घर के सामने और फिर भीरु के पिताजी को मेरे घर ही छोड़कर चले जाना शायद उन रिश्तेदारों को बहुत बुरा लगा , और वो आपस में बाते बनाने लगे , इसी बीच भीरू की माँ , उसके पिता का हाल जानने आ गई, जिसे आदरपूर्वक बताकर श्रीमती और पिताजी ने कुछ बाते ग़ौर से समझाई, और साथ ही कुछ दिन मेरे घर पर ही रहने को तैयार कर लिया , फिर कुछ समय में रामदीन क्लर्क जैसा मैंने कैलाश को समझाया था , उसे कहे  अनुसार एक पेपर लेकर आया , जिसे लेकर मैं सीधे भीरू के घर पहुंचा ,

मुझे अपने साथ बड़े बाबू को घर लेकर जाते हुए देख काना फूसी बंद हो गई, और सभी किसी नये विचार के इंतजार में शांतिपूर्वक हमें देखने लगे, मैं रामदीन को ले भीरू के घर आंगन में ही, जहाँ भीरू के ससुर जी , बूढों की मंडली के बीच मुखिया बन बैठे थे , वहाँ पहुँचा , रामदीन को देख सकपकाते हुए उन्होंने तुरंत भीरूके बड़े बेटे की ओर ऐसे देखा कि, कही उन दोनों के ऑफिस जाने की बात कहीं बड़े बाबू सबके सामने बता न दे , यह सोच तुरंत हमारे बैठने और आवभगत में लग गये , लेकिन चूंकि रामदीन जी हमारी मित्र मण्डली का हिस्सा थे , और कैलाश ने उन्हें समझा भी दिया था ,

तब वह बिना देर किये , भीरु के ससुर की ओर देख कहने लगे कि जैसा कि आप जानना चाहते थे , भीरुने अपने अपॉइंटमेंट के समय जबकि वह विवाहित नही था , तब नॉमिनेशन फॉम में स्पष्ट तौर से अपने माता - पिता को पचास- पचास प्रतिशत का हकदार बताया था , और साथ ही साथ जैसा कि उस समय यह नियम था , कि यदि भविष्य में कोई और भी उसकी संपत्ति , जमा राशि या पेंशन कि दावेदारी करता है , तब उसकी भीरु के माता - पिता या भीरू के स्वयं के द्वारा की जायेगी , ऐसा नियम उस समय इसलिए रखा गया था , क्योकि खान में काम करने के लिए बहुत दूर - दूर से अपरिचित लोगों का आना जाना, ऐसे समय में ख़ान कृमिक की मृत्यु हो जाने पर कोई झूठी दावेदारी पेश न करे, इसलिए बनाया गया था , और फिर यदि खान कृमिक इच्छानुसार किसी का नाम परिवर्तन करवाना चाहे तो कर सकता है , तब रामदीन ने वह पर्चा भीरुके ससुर जी के हाथ में थमाया , और बोले तब इस हिसाब से भीरू की मौत पर मिलने वाली संपूर्ण राशि माता - पिता के मध्य बराबर हिस्सों में बाँट दी जायेगी , और यदि उसके पिताजी किसी को नौकरी न देना चाहे तब , उस परिस्थिति में पेंशन की राशि भी उन्हीं के खाते में आयेगी,

यह तो थी , नौकरी और पैसों की बात कहते हुये उन्होंने अपने जेब में हाथ डालकर एक और पर्चा निकाला, और बोले एक और बात जो मैं आपको बता देना चाहता हूँ कि भीरुने भोपाल वाले मकान के लिए, दस लाख रुपये और बड़े बेटे की पढ़ाई के लिये , पाँच लाख रुपये का ऋण मैनेजमेंट से ले रखा है , जिसमें से अब तक मकान के आठ लाख और पढ़ाई के चार लाख बकाया है , जिसे जितनी जल्दी चुका दिया जाये उतना अच्छा है , नहीं तो मैनेजमेंट उस राशि को क्षतिपुर्ति की पंद्रह लाख की राशि में से काट लिया जायेगा , चाहे तो आप यह रशिद देख लो ,

अब तो जैसे सारे उपस्थित लोगों में सन्नाटा सा छा गया , क्योंकि सबकी उम्मीदें जिनमें भीरू का ससुर स्वयं शामिल था , खत्म होते नजर आई , क्योकि यहाँ सभी कुछ न कुछ राशि बटोरनें की फिराक में थे , जो बेकार साबित हो गए , मैने देखा कुछ रिश्तेदार तो तुरंत उठकर अपना - अपना बैग पैक करने में भी लग गये, भीरू का ससुर तिलमिलाते हुये बोला ऐसा कैसे हो सकता है ? मतलब क्षतिपुर्ति का कोई औचित्य ही नही ,जब सब कुछ कट ही जायेगा तो क्या मिलेगा ? इतने में तो क्रियाकर्म भी पूरे नहीं हो पायेगा.....

              तब रामदीन ने उनकी ओर देखते हुये कहा... हाँ ये तो बात है , लेकिन क्या करे , हम मध्यमवर्गी परिवार को ऐसे ही घर परिवार चलाना पड़ता है और फिर मुसीबत के समय रिश्तेदार ही काम में आयेगे, इसकी उम्मीद भी होती है , और फिर भीरु भी नसीब वाला है, कि उसे आप जैसे ससुर और इतने अच्छे रिश्तेदार मिले ,
              फिर चिंता किस बात की, सब मिलकर मदद करेगें तो इस परिवार को कोई परेशानी नहीं होंगी , और फिर हम लोग भी है ना , मैनेजमेंट से बात करके कुछ राशि माफ करवाने की बात करेगे ,

यह सुनते ही उसके ससुर जी का चेहरा फिका पड़ गया , लेकिन झूठा दिखावा करते हुये, कहने लगे हाँ हाँ ये तो ठीक है ..........हम लोग कुछ मिलकर करेगें, लेकिन नौकरी के लिये क्या करना होगा ? तब रामदीन ने मुस्कुराते हुये कहा , मतलब पोता है उनका , क्या भीरू के पिता अर्थात इसके दादा यह भी साबित नहीं कर पायेगें , आखिर इतना ख्याल रखता है उनका .....आखिर फिर करना ही क्या है ? उसे सिर्फ इतना ही तो लिखकर देना है कि, वह अपनी कमाई का आधा हिस्सा ,भीरु के माता पिता और पच्चीस प्रतिशत हिस्सा भीरु के परिवार को देगा, बस नौकरी उसकी , अगर दादाजी चाहे तो !

इतना सुनते ही बाकी सब सत्ते में आ गये, और हम दोनों अच्छा ठिक है बोलकर वहाँ से उठ चल पड़े ,और घर पहुंचकर बालकनी से नजारा देखने लगे , ईधर मेरी श्रीमती और पिताजी ने भीरू के माता पिता को अच्छे से समझा रखा था , हमने देखा कि धीरे - धीरे उस घर से मतलबी मेहमान उसी दिन अपने झूठे बहानों के और झूठे आंसुओं के साथ भीरू की पत्नी , बच्चों और भीरू के ससुर से विदाई मांगकर जाने लगें ।

शाम तक ही लगभग , आधे रिश्तेदारों का झुण्ड गायब हो चुका था , अब बचे ये तो , सिर्फ ऐसे लोग जो या तो किसी मजबुरी से या अच्छे भाव से रुके हुये थे , इधर भीरु का जवाई, जिसने अब तक भोपाल के मकान मालिक होने की सूचना अपने सभी रिश्तेदारों को दे चुका था , वह भारी चिंता से यह सोचकर चक्कर काट रहा था कि अब शेष बचे आठ लाख की राशि भला कौन चुकायेगा ???? क्योकि हमारे घर से निकलते ही बड़े बेटे ने नौकरी लेने से यह कहकर इंकार कर दिया कि मैं पूरी जिन्दगी पच्चीस प्रतिशत कमाई के लिये नही झोक सकता , नौकरी चाहे तो छोटे को दे दे, और इसी के साथ वे रिश्तेदार जिन्होंने नौकरी वाले बेटे को अपनी पसंद की लड़की दिलवाने का इरादा किया था , वे भी गायब हो गये ...........

क्रमशः......

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